साहित्य एक महकता हुआ उद्यान है... आइए! आनंद लीजिये...सुस्वागतम्!

Followers

Tuesday 25 February 2014

कृतियाँ:महाश्वेता देवी

जय हिन्द!

पिछली पोस्ट महाश्वेता जी के संछिप्त जीवन परिचय और उनके जयपुर सम्मेलन पर आधारित थी। इसलिए उनके साहित्यिक योगदान को याद करते हुए कुछ चर्चा उनके उपन्यासों की कर ली जाये. खेद है यह प्रस्तुति बहुत विलम्ब से हो पा रही है।

मित्रों,महाश्वेता जी अपनी लेखनी से समाज को बहुत कुछ दे चुकी हैं और अनवरत दे रहीं हैं,सच में समाज उनका बड़ा ही ऋणी है.
प्रस्तुत हैं यथासम्भव कुछ चुनिन्दा कृतियाँ-


िनत

अमृत संचय-

यह उपन्यास सन2001 में प्रकाश में आया था. लेखिका आदिवासी जीवन की प्रमाणिक जनकार होने के नाते, इतिहास को भी अपना विषय बनाया. 'झाँसी की रानी','जली थी अग्निशिखा,  और यह अमृत संचय इसका अच्छा उदहारण है।
उपन्यास की शुरुआत 1857 से पहले शुरू होता है जब देश संगठन की दृष्टि से समृद्ध नहीं था. अलग-अलग खेमों में राष्ट्र विभाजित था. संथाल में अंग्रेजों के विद्रोह से शुरू होकर उस विन्दु पर खत्म होता है जब भारतीय जनमानस के चेहरे और विन्यास में बदलाव नज़र आने लगा लगा था.
  यद्यपि देशी विदेशी 100 चरित्रों को समेटना कठिन होता है लेकिन आपने इसको बखूबी कर दिखाया.  विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष की आतुरता और जीवन की ललक शेष रह जाती है...यही पुस्तक की विषय-वस्तु है.
लार्ड कैनिंग,डलहौजी,नाना साहब,Doctrine of Lapse नीति,Civil Rebellionआदि का सुंदर विवेचन किया गया है.
भवानीशंकर और बृज दुलारी  पत्रों को भी बखूबी प्रस्तुत किया गया है।